रविवार, 24 अगस्त 2014

kashmeer

कश्मीर हमारा है ,
भारत देश हमारा है ।


चाहे कुछ भी करना पड़ जाए ,
चाहे मर जाना पड़ जाए । 
अंगुल भर ना छोड़ेगे ,
भारत माँ के पावन भू को ॥ 

बार -बार करके दुस्साहस ,
दुश्मन मात खाया है । 
पुनरावृत्ति किया यदि जालिम ,
टुकड़ों -टुकड़ों में बँट जाएगा ॥ 

भारत माँ का स्वाभिमान ,
कण-कण में समाया है। 
मातृभूमि रक्षार्थ ,
हमने  भी कसम खाई है ॥ 

अबकी बार किया कायरता ,
पाक को ख़ाक बना देंगे । 
दुनिया भर के सामने हम ,
भारत की शान बता देंगे ॥ 

कश्मीर हमारा है ,
भारत देश हमारा है \
 

krishak

हे  कृषक ! तुम वीर ,धीर ,
पर गरीब हो ।
तेरी  मजबूरियों ,भावनाओं को ,
जानता ,पहचानता हूँ ॥

अजब सी कर्म शक्ति ,
मन में अदम्य साहस ,
कभी दैवीय आपदाओं का  शिकार ,
कभी मानवीय प्रताड़नाओं का,
अंश पर भरण -पोषण का  भार ,
लिए जा रहे हो निरंतर ,
शैलेन्द्र भाँति जुर्रत ,
सिर ऊँचा किए ,
प्रमुदित चले जा रहे हो । 
 
करते हो दुर्बोध श्रम ,
पर देता न प्रारब्ध  साथ । 
दिन हो या रात ,
धूप हो या छाँव 
करते हो अनवरत श्रम । 
 
 
ये कृषक महान हो ,
देश  के  कर्णाधार हो । 
तुम पूज्यमान  हो ,
भारत की शान हो ॥ 

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

NAREE MAHIMA

                                              

हो दया की सागर ,
हो सुंदरता की आगार\ 
नारी की महिमा अपरम्पार 
है जानता पूरा संसार 
सृष्टि की हो तुम आधार 

नदियों जैसा अनवरत बहना ,
अपने गंतव्य तक पहुंचना । 
सागर में  मिल जाना,
फिर  भी ,अस्तित्व ना खोना ।।  

गम सहकर भी हँसते रहना ,
औरों को  सुख देना । 
शांति रूप में हो  यदि दुर्गा ,
रौद्र रूप में काली ॥ 

चिड़ियों में हो  कोयल की कूक ,
देवियों में हो माँ दुर्गा का रूप । 
माँ गंगा की हो निर्मलता ,
जिसके आश्रय में मिलती पावनता ॥ 

 
नारी  की महिमा  अपरम्पार ,
यह जग गाए बारम्बार  । 




 

मंगलवार, 19 अगस्त 2014

vivek virendra pathak hindi poem: हमें  ग़म  में ना  जीने दो ,हमें  कम भी ना जीने  द...

vivek virendra pathak hindi poem: हमें  ग़म  में ना  जीने दो ,




हमें  ग़म  में ना  जीने दो ,
हमें  कम भी ना जीने  दो । 
थोड़ा तो पास का  अहसास ,
हमें  भी तो  करने  दो ॥ 


तक़ल्लुफ़ कर  जरा  मुस्कान ,
अधरों  पर तो आने दे । 
कुछ पल के लिए ही,
मेरे  तन में जान आने दो ॥ 

कोई  रात की रानी है कहता ,
कोई दिन में अधखुली गुलाब । 
हजारों शोधकर्ता खोजते  सुंदरता का राज़ ,
क्या कहूँ ,कैसे कहूँ ,तुम हो मेरी जिंदगी की आगाज़ ॥

सोमवार, 18 अगस्त 2014

हमें  ग़म  में ना  जीने दो ,
हमें  कम भी ना जीने  दो । 
थोड़ा तो पास का  अहसास ,
हमें  भी तो  करने  दो ॥ 


तक़ल्लुफ़ कर  जरा  मुस्कान ,
अधरों  पर तो आने दे । 
कुछ पल के लिए ही,
मेरे  तन में जान आने दो ॥ 

कोई  रात की रानी है कहता ,
कोई दिन में अधखुली गुलाब । 
हजारों शोधकर्ता खोजते  सुंदरता का राज़ ,
क्या कहूँ ,कैसे कहूँ ,तुम हो मेरी जिंदगी की आगाज़ ॥ 

सोमवार, 30 जून 2014

           मासूम बचपन 

सरकार   बनती  और बिगड़ती  है 
मूक जनमानस की आश हर  पल सँवरती  है 
 आशा ही आशा ,आशा नहीं  टूटती 
सड़कों के किनारे भारत के भविष्य 
तन पर चिथड़े ,हाथों में कटोरे 
इधर-उधर घूमते भगवान के भरोसे 
क्या पता था ,बचपन    छिन  जाएगा 


अंस पर  आजीवन  बोझ लद  जाएगा 
सोती सरकार, सोता हूआ  समाज 
क्या यहीं  है ?२१  सदी  की आगाज़ 

छोटे - छोटे मासूम कामगार 
हाथों में  प्याले ,पैरों में छाले 
है भविष्य इनका ,सरकार और समाज के हवाले 
क्या सिमट कर  रह जाएगा भारत का भाग्य ?
नहीं हो पाएगा इनके साथ न्याय 

कठोर ,मज़बूत  सरकार की पहल 
जो कर सके बदहाल जीवन  खुशहाल 
सबका हाथ ,मिल जाए जब साथ 
मिट जाए दिलों से  स्वार्थ 
हो निहित मन में परमार्थ 
भारत विश्व में  बन  जाएगा समर्थ 
हो नहीं पाएगा किसी मासूम के साथ अनर्थ 

बुधवार, 25 जून 2014


पशु जितना भी नहीं रहा इंसान

घटती बलात्कार की घटनाएँ 
खंडित हो रही मानवीय  भावनाएँ 
लगाते हो नारा -'' नारी  का हो सम्मान''
फिर क्यों करते हो नारी का अपमान 
पशु जितना भी नहीं रहा ज्ञान 
नाते -रिश्तों का नहीं रहा पहचान 
पीड़ित नारी की  गूँजे चीख 
 माँग रही बस एक ही भीख 
मत  छीनो अधरों की मुस्कान 
मैं भी हूँ एक इंसान 
 
 
बलात्कार की पीड़िता 
 मानसिक वेदनाओं से भारित 
क्या है इसका दोष ?
फिर क्यों है इतना रोष ?
अनगिनत प्रश्न  की लड़ियाँ
मनगढ़ंत घटनाओं की कड़ियाँ  
बैठ बलात्कारी नेता के घर
मान बचाने की कोशिश करे भरपूर 
जाँच पर जाँच का फ़रमान 
 बलात्कारी के सम्मान पर न आए आँच


मानसिक, शारीरिक  वेदनाओं से 
 समाज के उपालम्भों  से 
त्रस्त  जिन्दिगियाँ  
काल कवलित हो जाती हैं 
सितारों संग मिल जाती हैं 
आसमान पर निहारती हैं 
हँसती सभ्य   समाज पर 
ढोंग -पाखण्ड   भरे  मानवता  के अभिमान पर 
पशुवत इंसान पर । 






















 

शुक्रवार, 23 मई 2014

जब राम गुण संचार होगा ....... 

जन ,जन  का कल्याण होगा ,
जब राम गुण संचार । 
 सत्य के मार्ग पर चलते रहो ,
बुराइयों को दूर करते रहो । 
दीन -दुखी ,निर्धन सबको ,
राम का पाठ  पढ़ाते रहो॥ 
राम  के एक -  एक गुणों का संचार कर दो । 
मातृत्वता भाव फूले -फले ,
भातृत्वता सब में दिखे । 
 
भक्त के प्रति आदर सब में जगे ,
जान-जान में प्रेम का दीपक जले।  
निःस्वार्थ सेवा का भाव सब में दिखे ,
त्याग की भावना जन-जन में रहे ।। 
 
 
अस्पृश्यता का भाव दिल में ना रहे ,
सब मानव हैं ,यह भाव रहे । 
विश्व जन का कल्याण होगा ,
जब राम गुण का संचार होगा ॥ 
 
 
 

गुरुवार, 22 मई 2014

बेबसी,बेबसी,ये कैसी बेबसी  …… 

 
बेबसी ,बेबसी ,ये कैसी बेबसी ,
कर नहीं पा रहे हो विरोध ,
जो कर रहा तुम्हारा अवरोध । 
भ्रष्टाचार की जाल में नित निरंतर ,
फिर भी जी हजूरी अक्सर , 
बेबसी ,बेबसी,ये कैसी बेबसी । 
करो संघर्ष ,करो आंदोलन,
होगा उत्कर्ष ,न होगा गबन। 
 
 
कब तक डरोगे ,
कब तक घुँट -घुँट मरोगे ,
बेबसी ,बेबसी , ये कैसी बेबसी । 
हो रहा प्रताड़ित गरीब ,
हो गया है प्राणी अजीब । 
गिड़गिड़ाता है ,दया की भीख माँगता है ,
फिर भी तरस ना आता  है ,
बेबसी ,बेबसी ,ये कैसी बेबसी । 
  
 

            हो जाओ सजग  नारी .... 

ईश्वर ने बनाया है नारी ,
खूँटे में बँधना  है लाचारी । 
क्योंकि वह तो है बेचारी, 
जो अपनो से है हारी । 
 
जीत   लिया  है  नर गण ,
समाज में अस्तित्व रण।  
नर कर लिया  प्रण, 
नारी को न देंगे त्राण । 
 
 हो जाओ सजग नारी,
आ जाओ बाहर सारी । 
ले लो हस्त कटारी ,
होगी जीत तुम्हारी । 
 
निश्चित मुक्त हो जाओगी ,
पर्दे  से बाहर जब  आओगी । 
स्वतन्त्र विचार अपनाओगी ,
समानता का दर्ज़ा  पाओगी ।