पशु जितना भी नहीं रहा इंसान
घटती बलात्कार की घटनाएँ
खंडित हो रही मानवीय भावनाएँ
लगाते हो नारा -'' नारी का हो सम्मान''
फिर क्यों करते हो नारी का अपमान
पशु जितना भी नहीं रहा ज्ञान
नाते -रिश्तों का नहीं रहा पहचान
पीड़ित नारी की गूँजे चीख
माँग रही बस एक ही भीख
मत छीनो अधरों की मुस्कान
मैं भी हूँ एक इंसान
मानसिक वेदनाओं से भारित
क्या है इसका दोष ?
फिर क्यों है इतना रोष ?
अनगिनत प्रश्न की लड़ियाँ
मनगढ़ंत घटनाओं की कड़ियाँ
बैठ बलात्कारी नेता के घर
मान बचाने की कोशिश करे भरपूर
जाँच पर जाँच का फ़रमान
बलात्कारी के सम्मान पर न आए आँच
मानसिक, शारीरिक वेदनाओं से
समाज के उपालम्भों से
त्रस्त जिन्दिगियाँ
काल कवलित हो जाती हैं
सितारों संग मिल जाती हैं
आसमान पर निहारती हैं
हँसती सभ्य समाज पर
ढोंग -पाखण्ड भरे मानवता के अभिमान पर
पशुवत इंसान पर ।