सोमवार, 30 जून 2014

           मासूम बचपन 

सरकार   बनती  और बिगड़ती  है 
मूक जनमानस की आश हर  पल सँवरती  है 
 आशा ही आशा ,आशा नहीं  टूटती 
सड़कों के किनारे भारत के भविष्य 
तन पर चिथड़े ,हाथों में कटोरे 
इधर-उधर घूमते भगवान के भरोसे 
क्या पता था ,बचपन    छिन  जाएगा 


अंस पर  आजीवन  बोझ लद  जाएगा 
सोती सरकार, सोता हूआ  समाज 
क्या यहीं  है ?२१  सदी  की आगाज़ 

छोटे - छोटे मासूम कामगार 
हाथों में  प्याले ,पैरों में छाले 
है भविष्य इनका ,सरकार और समाज के हवाले 
क्या सिमट कर  रह जाएगा भारत का भाग्य ?
नहीं हो पाएगा इनके साथ न्याय 

कठोर ,मज़बूत  सरकार की पहल 
जो कर सके बदहाल जीवन  खुशहाल 
सबका हाथ ,मिल जाए जब साथ 
मिट जाए दिलों से  स्वार्थ 
हो निहित मन में परमार्थ 
भारत विश्व में  बन  जाएगा समर्थ 
हो नहीं पाएगा किसी मासूम के साथ अनर्थ 

बुधवार, 25 जून 2014


पशु जितना भी नहीं रहा इंसान

घटती बलात्कार की घटनाएँ 
खंडित हो रही मानवीय  भावनाएँ 
लगाते हो नारा -'' नारी  का हो सम्मान''
फिर क्यों करते हो नारी का अपमान 
पशु जितना भी नहीं रहा ज्ञान 
नाते -रिश्तों का नहीं रहा पहचान 
पीड़ित नारी की  गूँजे चीख 
 माँग रही बस एक ही भीख 
मत  छीनो अधरों की मुस्कान 
मैं भी हूँ एक इंसान 
 
 
बलात्कार की पीड़िता 
 मानसिक वेदनाओं से भारित 
क्या है इसका दोष ?
फिर क्यों है इतना रोष ?
अनगिनत प्रश्न  की लड़ियाँ
मनगढ़ंत घटनाओं की कड़ियाँ  
बैठ बलात्कारी नेता के घर
मान बचाने की कोशिश करे भरपूर 
जाँच पर जाँच का फ़रमान 
 बलात्कारी के सम्मान पर न आए आँच


मानसिक, शारीरिक  वेदनाओं से 
 समाज के उपालम्भों  से 
त्रस्त  जिन्दिगियाँ  
काल कवलित हो जाती हैं 
सितारों संग मिल जाती हैं 
आसमान पर निहारती हैं 
हँसती सभ्य   समाज पर 
ढोंग -पाखण्ड   भरे  मानवता  के अभिमान पर 
पशुवत इंसान पर ।