रविवार, 24 अगस्त 2014

krishak

हे  कृषक ! तुम वीर ,धीर ,
पर गरीब हो ।
तेरी  मजबूरियों ,भावनाओं को ,
जानता ,पहचानता हूँ ॥

अजब सी कर्म शक्ति ,
मन में अदम्य साहस ,
कभी दैवीय आपदाओं का  शिकार ,
कभी मानवीय प्रताड़नाओं का,
अंश पर भरण -पोषण का  भार ,
लिए जा रहे हो निरंतर ,
शैलेन्द्र भाँति जुर्रत ,
सिर ऊँचा किए ,
प्रमुदित चले जा रहे हो । 
 
करते हो दुर्बोध श्रम ,
पर देता न प्रारब्ध  साथ । 
दिन हो या रात ,
धूप हो या छाँव 
करते हो अनवरत श्रम । 
 
 
ये कृषक महान हो ,
देश  के  कर्णाधार हो । 
तुम पूज्यमान  हो ,
भारत की शान हो ॥ 

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