शुक्रवार, 23 मई 2014

जब राम गुण संचार होगा ....... 

जन ,जन  का कल्याण होगा ,
जब राम गुण संचार । 
 सत्य के मार्ग पर चलते रहो ,
बुराइयों को दूर करते रहो । 
दीन -दुखी ,निर्धन सबको ,
राम का पाठ  पढ़ाते रहो॥ 
राम  के एक -  एक गुणों का संचार कर दो । 
मातृत्वता भाव फूले -फले ,
भातृत्वता सब में दिखे । 
 
भक्त के प्रति आदर सब में जगे ,
जान-जान में प्रेम का दीपक जले।  
निःस्वार्थ सेवा का भाव सब में दिखे ,
त्याग की भावना जन-जन में रहे ।। 
 
 
अस्पृश्यता का भाव दिल में ना रहे ,
सब मानव हैं ,यह भाव रहे । 
विश्व जन का कल्याण होगा ,
जब राम गुण का संचार होगा ॥ 
 
 
 

गुरुवार, 22 मई 2014

बेबसी,बेबसी,ये कैसी बेबसी  …… 

 
बेबसी ,बेबसी ,ये कैसी बेबसी ,
कर नहीं पा रहे हो विरोध ,
जो कर रहा तुम्हारा अवरोध । 
भ्रष्टाचार की जाल में नित निरंतर ,
फिर भी जी हजूरी अक्सर , 
बेबसी ,बेबसी,ये कैसी बेबसी । 
करो संघर्ष ,करो आंदोलन,
होगा उत्कर्ष ,न होगा गबन। 
 
 
कब तक डरोगे ,
कब तक घुँट -घुँट मरोगे ,
बेबसी ,बेबसी , ये कैसी बेबसी । 
हो रहा प्रताड़ित गरीब ,
हो गया है प्राणी अजीब । 
गिड़गिड़ाता है ,दया की भीख माँगता है ,
फिर भी तरस ना आता  है ,
बेबसी ,बेबसी ,ये कैसी बेबसी । 
  
 

            हो जाओ सजग  नारी .... 

ईश्वर ने बनाया है नारी ,
खूँटे में बँधना  है लाचारी । 
क्योंकि वह तो है बेचारी, 
जो अपनो से है हारी । 
 
जीत   लिया  है  नर गण ,
समाज में अस्तित्व रण।  
नर कर लिया  प्रण, 
नारी को न देंगे त्राण । 
 
 हो जाओ सजग नारी,
आ जाओ बाहर सारी । 
ले लो हस्त कटारी ,
होगी जीत तुम्हारी । 
 
निश्चित मुक्त हो जाओगी ,
पर्दे  से बाहर जब  आओगी । 
स्वतन्त्र विचार अपनाओगी ,
समानता का दर्ज़ा  पाओगी । 
 
 
 

गुरुवार, 8 मई 2014

            आखिर तुम कौन ?

 
 
ये इंसान ,क्यूँ  बन रहे हो शैतान 
घोट इंसानियत का गला 
किसका कर रहे हो भला 
चारों ओर फैली  है साम्प्रदायिकता की आग 
हाथों में ले निकले हो खड्ग 
पूछो अपने आप से 
किसको मारोगो ?
हिंदू  मुस्लिम को ,मुस्लिम हिन्दु को 
क्या इससे पाओगे ?
लगा कालिख मुख पर 
किस ईश को मुख दिखलाओगे 
करूण विलाप कर्णों में गूँजेगी 
एक विधवा यहीं पूछेंगी 
आखिर तुम कौन हो?
इंसान या शैतान 
सोच में पड़ जाओगे 
अपने पर ही शर्माओगे 
ले अल्लाह ,भगवान का नाम 
ले रहे हो इन्तक़ाम 
सोचिए ज़रा, ईश को क्या बताओगे ?
काली करतूतों  को कैसे सुनाओगे 
 

रविवार, 4 मई 2014

                         सांप्रदायिक हिंसा 

सांप्रदायिक  हिंसा बहाती है लहूँ , रंग देती  है धरा 
नहीं पहचानते है लोग ,भूल जाते हैं भाई -चारा 
कैसे वो लोग हैं ,जो अपनो पर उठाते हैं तलवार 
मानव नहीं दानव हैं ,ऐसे लोगों को है धिक्कार 
 
हो जाती हैं विधवा ,हो जाते हैं अनाथ हजारों 
देख कर नहीं पिघलता निष्ठुर हृदय,हिंषक मक्कारों 
 ये मासूम बेसहारे बच्चे क्या किए तुम्हारा 
कुछ नहीं !फिर  किए  इन्हें अनाथ बेसहारा 
 
जाति ,धर्म ,संप्रदाय है कष्टों का कारण 
त्याग दो ,यहीं है सच्चा निवारण 
मानव मानव के लिए ,यहीं सच्चा धर्म हो 
सुख -दुःख में साथ रहें ,यही सच्चा कर्म  हो 

                    

                               लाश पर रोटियाँ 

लाश पर रोटियाँ सकता मानव
स्वार्थ सिद्धि के लिए बन गया है दानव 
क्या रिश्ते क्या नाते नहीं है पहचानता 
स्वार्थ सिद्धि को सब कुछ है मानता 
 
बह   रही हैं ख़ून की नदियाँ हज़ारों  रोज़ 
लुट रही हैं अस्मिता बालाओं की हर रोज़ 
सिर्फ़ अर्थ की ही हो रही है खोज
धनार्थ  मानव बन गया दानव आज़ 
 
लाश की अवशेष होती हैं हड्डियाँ 
पीस कर बनती हैं खाद की बोरियाँ 
हड्डियों को पीसने मेन में  आती लाज़ 
क्या करे? मज़बूर मानव आज़ 
 

शनिवार, 3 मई 2014

  

              गाँव 

छोड़ शहर की  गंदी छाया -माया,
पाने को प्रकृति की सुन्दर छाँव 
पकड़ा पथ जो जाती   गाँव 
नहीं  मिला पहले जैसा भाव 
चौड़ी-चौड़ी गालियाँ सँकरी 
हाव -भाव से लगते जैसे शहरी 
बरबस भव मन में उमड़े 
थोड़ी सी धूल  उड़े 
नहीं मिला जब ,मन व्यथित हुआ 
तब से  तन को समीर का  झोंका छुआ 
उड़  थे पॉलिथीन के कचड़े 
मुझे दिखे कुछ ग्रामीण  तन से अकड़े 
हाथों में सुन्दर कुत्ते,सिकड़े  से जकड़े 
सिमटे -सिमटे से खेत बाग़                                                       विवेक वीरेंद्र पाठक 
चहुँ दिश शहरीकरण की  आग 
चहुँ दिश गाड़ी मोटर की धूल 
मुरझाए -मुरझाए से कनेर के फूल 
पत्तियाँ दिख रही थी जैसे शूल 
लगता था जैसे मैं गया ग्राम पथ भूल 
मानस पटल पर उभरने लगी स्मृतियाँ 
याद आने लगी गाँव की पुरानी गलियाँ 
सुन्दर सी गाँव की अमराई 
साँझ पहर द्वार पर चारपाई
द्वार पर हरित नीम का पेड़ 
विहगों के सुन्दर से नीड़ 
बबुआ भइया की लुप्त पुकार 
नहीं मिला कहीं संयुक्त पुकार 
भाई-चारे ,अखंडता के भाव 
खंडित हो पनपे थे दुर्भाव