सोमवार, 30 जून 2014

           मासूम बचपन 

सरकार   बनती  और बिगड़ती  है 
मूक जनमानस की आश हर  पल सँवरती  है 
 आशा ही आशा ,आशा नहीं  टूटती 
सड़कों के किनारे भारत के भविष्य 
तन पर चिथड़े ,हाथों में कटोरे 
इधर-उधर घूमते भगवान के भरोसे 
क्या पता था ,बचपन    छिन  जाएगा 


अंस पर  आजीवन  बोझ लद  जाएगा 
सोती सरकार, सोता हूआ  समाज 
क्या यहीं  है ?२१  सदी  की आगाज़ 

छोटे - छोटे मासूम कामगार 
हाथों में  प्याले ,पैरों में छाले 
है भविष्य इनका ,सरकार और समाज के हवाले 
क्या सिमट कर  रह जाएगा भारत का भाग्य ?
नहीं हो पाएगा इनके साथ न्याय 

कठोर ,मज़बूत  सरकार की पहल 
जो कर सके बदहाल जीवन  खुशहाल 
सबका हाथ ,मिल जाए जब साथ 
मिट जाए दिलों से  स्वार्थ 
हो निहित मन में परमार्थ 
भारत विश्व में  बन  जाएगा समर्थ 
हो नहीं पाएगा किसी मासूम के साथ अनर्थ 

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