शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

NAREE MAHIMA

                                              

हो दया की सागर ,
हो सुंदरता की आगार\ 
नारी की महिमा अपरम्पार 
है जानता पूरा संसार 
सृष्टि की हो तुम आधार 

नदियों जैसा अनवरत बहना ,
अपने गंतव्य तक पहुंचना । 
सागर में  मिल जाना,
फिर  भी ,अस्तित्व ना खोना ।।  

गम सहकर भी हँसते रहना ,
औरों को  सुख देना । 
शांति रूप में हो  यदि दुर्गा ,
रौद्र रूप में काली ॥ 

चिड़ियों में हो  कोयल की कूक ,
देवियों में हो माँ दुर्गा का रूप । 
माँ गंगा की हो निर्मलता ,
जिसके आश्रय में मिलती पावनता ॥ 

 
नारी  की महिमा  अपरम्पार ,
यह जग गाए बारम्बार  । 




 

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