हो दया की सागर ,
हो सुंदरता की आगार\
नारी की महिमा अपरम्पार
है जानता पूरा संसार
सृष्टि की हो तुम आधार
नदियों जैसा अनवरत बहना ,
अपने गंतव्य तक पहुंचना ।
सागर में मिल जाना,
फिर भी ,अस्तित्व ना खोना ।।
गम सहकर भी हँसते रहना ,
औरों को सुख देना ।
शांति रूप में हो यदि दुर्गा ,
रौद्र रूप में काली ॥
चिड़ियों में हो कोयल की कूक ,
देवियों में हो माँ दुर्गा का रूप ।
माँ गंगा की हो निर्मलता ,
जिसके आश्रय में मिलती पावनता ॥
नारी की महिमा अपरम्पार ,
यह जग गाए बारम्बार ।
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