आखिर तुम कौन ?
ये इंसान ,क्यूँ बन रहे हो शैतान
घोट इंसानियत का गला
किसका कर रहे हो भला
चारों ओर फैली है साम्प्रदायिकता की आग
हाथों में ले निकले हो खड्ग
पूछो अपने आप से
किसको मारोगो ?
हिंदू मुस्लिम को ,मुस्लिम हिन्दु को
क्या इससे पाओगे ?
लगा कालिख मुख पर
किस ईश को मुख दिखलाओगे
करूण विलाप कर्णों में गूँजेगी
एक विधवा यहीं पूछेंगी
आखिर तुम कौन हो?
इंसान या शैतान
सोच में पड़ जाओगे
अपने पर ही शर्माओगे
ले अल्लाह ,भगवान का नाम
ले रहे हो इन्तक़ाम
सोचिए ज़रा, ईश को क्या बताओगे ?
काली करतूतों को कैसे सुनाओगे