रविवार, 4 मई 2014

                    

                               लाश पर रोटियाँ 

लाश पर रोटियाँ सकता मानव
स्वार्थ सिद्धि के लिए बन गया है दानव 
क्या रिश्ते क्या नाते नहीं है पहचानता 
स्वार्थ सिद्धि को सब कुछ है मानता 
 
बह   रही हैं ख़ून की नदियाँ हज़ारों  रोज़ 
लुट रही हैं अस्मिता बालाओं की हर रोज़ 
सिर्फ़ अर्थ की ही हो रही है खोज
धनार्थ  मानव बन गया दानव आज़ 
 
लाश की अवशेष होती हैं हड्डियाँ 
पीस कर बनती हैं खाद की बोरियाँ 
हड्डियों को पीसने मेन में  आती लाज़ 
क्या करे? मज़बूर मानव आज़