लाश पर रोटियाँ
लाश पर रोटियाँ सकता मानव
स्वार्थ सिद्धि के लिए बन गया है दानव
क्या रिश्ते क्या नाते नहीं है पहचानता
स्वार्थ सिद्धि को सब कुछ है मानता
बह रही हैं ख़ून की नदियाँ हज़ारों रोज़
लुट रही हैं अस्मिता बालाओं की हर रोज़
सिर्फ़ अर्थ की ही हो रही है खोज
धनार्थ मानव बन गया दानव आज़
लाश की अवशेष होती हैं हड्डियाँ
पीस कर बनती हैं खाद की बोरियाँ
हड्डियों को पीसने मेन में आती लाज़
क्या करे? मज़बूर मानव आज़