सांप्रदायिक हिंसा
सांप्रदायिक हिंसा बहाती है लहूँ , रंग देती है धरा
नहीं पहचानते है लोग ,भूल जाते हैं भाई -चारा
कैसे वो लोग हैं ,जो अपनो पर उठाते हैं तलवार
मानव नहीं दानव हैं ,ऐसे लोगों को है धिक्कार
हो जाती हैं विधवा ,हो जाते हैं अनाथ हजारों
देख कर नहीं पिघलता निष्ठुर हृदय,हिंषक मक्कारों
ये मासूम बेसहारे बच्चे क्या किए तुम्हारा
कुछ नहीं !फिर किए इन्हें अनाथ बेसहारा
जाति ,धर्म ,संप्रदाय है कष्टों का कारण
त्याग दो ,यहीं है सच्चा निवारण
मानव मानव के लिए ,यहीं सच्चा धर्म हो
सुख -दुःख में साथ रहें ,यही सच्चा कर्म हो